बांग्लादेश इस समय एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दावे खोखले नजर आ रहे हैं। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के शासनकाल में पूरा देश हिंसा की आग में झुलस रहा है। स्थिति यह है कि न केवल हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं, बल्कि अब कला और संस्कृति की दुनिया से जुड़े लोग भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं। कट्टरपंथियों का बढ़ता प्रभाव बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्ष पहचान को पूरी तरह मिटाने पर तुला है।
रॉक स्टार जेम्स के कॉन्सर्ट पर हमला: कट्टरपंथ की नई हद
हालिया घटना फरीदपुर की है, जहाँ बांग्लादेश के सबसे लोकप्रिय रॉक स्टार जेम्स (फारुक महफूज अनाम) के कॉन्सर्ट को हिंसक भीड़ ने निशाना बनाया। जेम्स, जिन्होंने बॉलीवुड में भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा है, शुक्रवार रात फरीदपुर जिला स्कूल की 185वीं वर्षगांठ के अवसर पर परफॉर्म करने वाले थे।
जैसे ही कार्यक्रम शुरू होने वाला था, कट्टरपंथियों की एक भीड़ ने आयोजन स्थल पर धावा बोल दिया। हमलावरों ने ईंट-पत्थर फेंके और जबरन मंच की ओर बढ़ने की कोशिश की। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, स्थिति इतनी भयावह हो गई कि छात्रों के कड़े विरोध के बावजूद सुरक्षा कारणों से कॉन्सर्ट को रद्द करना पड़ा। जेम्स को वहां से सुरक्षित निकालने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। यह हमला महज एक गायक पर हमला नहीं था, बल्कि संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों को पूरी तरह बंद करने की एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा था।
जलती हुई विरासत और पलायन करते कलाकार
प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस स्थिति पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर जानकारी साझा की कि बांग्लादेश के प्रतिष्ठित सांस्कृतिक केंद्र 'छायानौत' और 'उदिची' जैसे संगठनों को निशाना बनाया जा रहा है। उदिची एक ऐसा संस्थान है जो दशकों से संगीत, थिएटर और लोक संस्कृति के माध्यम से धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील सोच को बढ़ावा देता रहा है, लेकिन आज उसे राख के ढेर में बदला जा रहा है।
सांस्कृतिक असुरक्षा का आलम यह है कि मैहर घराने के जाने-माने कलाकार सिराज अली खान (उस्ताद अलाउद्दीन खान के वंशज) हाल ही में ढाका पहुंचे थे, लेकिन वहां के माहौल को देखकर बिना किसी कार्यक्रम के भारत लौट आए। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि जब तक देश में कलाकार और सांस्कृतिक संस्थान सुरक्षित नहीं होंगे, वे वापस नहीं लौटेंगे।
क्या यूनुस सरकार के पास कोई नियंत्रण है?
यूनुस सरकार के सत्ता में आने के बाद उम्मीद जताई गई थी कि शांति बहाल होगी, लेकिन हकीकत इसके उलट है।
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अल्पसंख्यकों पर प्रहार: मंदिरों में तोड़फोड़ और हिंदुओं के घरों पर हमले लगातार जारी हैं।
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सांस्कृतिक सेंसरशिप: कट्टरपंथी समूहों का मानना है कि संगीत और कला "इस्लाम विरोधी" हैं, और वे इसे बलपूर्वक रोकना चाहते हैं।
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कानून व्यवस्था का पतन: पुलिस और प्रशासन भीड़ के सामने लाचार नजर आ रहे हैं, जिससे उपद्रवियों के हौसले बुलंद हैं।
निष्कर्ष
आज का बांग्लादेश एक वैचारिक युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। एक तरफ वे लोग हैं जो अपनी सांस्कृतिक विरासत और कला को बचाना चाहते हैं, और दूसरी तरफ वे कट्टरपंथी ताकतें हैं जो पूरे देश को मध्यकालीन सोच की ओर धकेलना चाहती हैं। यदि यूनुस सरकार ने समय रहते इन अराजक तत्वों पर लगाम नहीं लगाई, तो बांग्लादेश की कला, संगीत और वह 'सोनार बांग्ला' का सपना हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दफन हो जाएगा।