इटली के अब्रूज़ो (Abruzzo) पर्वतमाला की ऊंचाइयों पर बसा एक छोटा सा गाँव, पगलियारा देई मारसी, दुनिया के लिए एक मिसाल और चेतावनी दोनों है। एक समय ऐसा था जब इस गाँव की पथरीली गलियों में इंसानों की आवाज़ें लुप्त हो चुकी थीं और वहां केवल बिल्लियों का बसेरा था। लेकिन तीन दशकों के लंबे सन्नाटे के बाद, इस गाँव में एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे इटली का ध्यान अपनी ओर खींच लिया—30 साल बाद यहाँ एक बच्चे का जन्म हुआ है।
बिल्लियों का साम्राज्य और खामोश गलियां
पगलियारा देई मारसी की पहचान 'बिल्लियों के गाँव' के रूप में होने लगी थी। यहाँ की जनसंख्या इतनी घट गई थी कि गलियों में इंसानों से ज्यादा बिल्लियां नज़र आती थीं। ये बिल्लियां घरों की छतों पर धूप सेंकती, दरवाजों से बेरोक-टोक अंदर आतीं और दीवारों पर आराम करती थीं। गाँव की शांति में केवल उनके पंजों की आहट और गुर्राहट ही सुनाई देती थी। दशकों से यहाँ कोई नया जीवन नहीं पनपा था, और गाँव धीरे-धीरे एक 'घोस्ट टाउन' (भूतिया शहर) बनने की राह पर था।
लारा का जन्म: एक नई उम्मीद
मार्च 2024 में जब लारा नाम की बच्ची का जन्म हुआ, तो यह केवल एक परिवार की खुशी नहीं थी, बल्कि पूरे गाँव के लिए एक ऐतिहासिक उत्सव बन गया। लगभग 30 वर्षों में यह पहला मौका था जब इस मिट्टी पर किसी नवजात की किलकारी गूँजी। लारा के आने से उन गलियों में हलचल शुरू हुई है जहाँ वर्षों से केवल बुजुर्गों की लाठियों की आवाज़ सुनाई देती थी। गाँव की मेयर ग्यूसेपिना पेरोज़ी, जो लारा के घर के पास ही रहती हैं, कहती हैं कि उन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अपनों को खोया है, लेकिन इस बच्चे के जन्म ने फिर से भविष्य की उम्मीद जगाई है।
इटली का गहराता 'बर्थ रेट' संकट
पगलियारा देई मारसी की यह कहानी इटली के एक बड़े राष्ट्रीय संकट का प्रतिबिंब है। इटली वर्तमान में भीषण जनसांख्यिकीय गिरावट (Demographic Decline) से जूझ रहा है:
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ऐतिहासिक गिरावट: 2024 में इटली में केवल 3,69,944 बच्चे पैदा हुए, जो रिकॉर्ड स्तर पर सबसे कम है।
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फर्टिलिटी रेट: यहाँ प्रजनन दर गिरकर प्रति महिला 1.18 बच्चे रह गई है, जो यूरोपीय संघ में सबसे निचले स्तरों में से एक है।
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2025 के डरावने आंकड़े: शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, 2025 के पहले सात महीनों में जन्म दर में पिछले साल के मुकाबले 10.2% की और गिरावट आई है।
बूढ़ा होता देश और खाली क्लासरूम
यह संकट केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है। अब्रूज़ो जैसे क्षेत्रों में स्कूल के क्लासरूम खाली हो रहे हैं और सार्वजनिक सेवाओं पर बोझ बढ़ रहा है क्योंकि आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है। युवाओं के पलायन और आर्थिक असुरक्षा के कारण लोग परिवार बढ़ाने से कतरा रहे हैं। पगलियारा देई मारसी जैसे छोटे गाँव इस 'सिकुड़ते हुए समाज' का सबसे जीवंत उदाहरण हैं।