राजस्थान में बीजेपी आलाकमान ने बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी को हटा दिया है. उनकी जगह मूल रूप से ओबीसी समुदाय से आने वाले मदन राठौड़ को अध्यक्ष बनाया गया है. मदन राठौड़ को 5 महीने पहले ही राज्यसभा सांसद भी बनाया गया था. ऐसे में सवाल उठता है कि एक साल पहले अध्यक्ष बनाए गए सीपी जोशी को पार्टी ने क्यों हटाया? राजस्थान एक ऐसा राज्य रहा है जहां हर 5 साल में सत्ता बदल जाती है। पिछले 25 साल का इतिहास तो यही बता रहा है. ऐसे राजनीतिक उथल-पुथल के सामने जातीय समीकरणों को भी सुलझाना होगा.
1. ओबीसी वोट बैंक को साधना सबसे बड़ी चुनौती है
राजस्थान की कांग्रेस सरकार के दौरान बाड़मेर विधायक हरीश चौधरी के नेतृत्व में ओबीसी आरक्षण बढ़ाने को लेकर काफी विवाद हुआ था. इसके अलावा उन्हें कई बीजेपी नेताओं का भी समर्थन मिला. लोकसभा चुनाव में विपक्ष के लिए आरक्षण बड़ा मुद्दा था. ऐसे में पार्टी को अपने ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने के लिए मूल ओबीसी अध्यक्ष नियुक्त करना पड़ा. ऐसे में सीपी जोशी की प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई तय थी. लोकसभा चुनाव में ओबीसी जातियों ने कई सीटों पर बीजेपी के खिलाफ जमकर वोट किया. ऐसे में ऊंची जातियां हमेशा से बीजेपी का कोर वोट बैंक रही हैं. पार्टी ने ओबीसी समुदाय को संदेश देने के लिए मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.
2. लोकसभा में भी हुआ झगड़ा
लोकसभा चुनाव में पार्टी को कई जगहों पर अंदरूनी हमलों का सामना करना पड़ा. बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर निर्दलीय विधायक रवींद्र सिंह भाटी ने बीजेपी को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी रवींद्र सिंह भाटी के कारण चुनाव हार गए. इसके अलावा कोटा-बूंदी और शेखावाटी सीटों पर भी अंदरूनी कलह के कारण बीजेपी को भारी नुकसान हुआ है. प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते डैमेज कंट्रोल करना अध्यक्ष की जिम्मेदारी है, जिसमें सीपी जोशी विफल रहे.
3. बड़े नेताओं को नहीं जुटा सके
लोकसभा चुनाव में पार्टी को अपेक्षित सीटें नहीं मिलीं. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे प्रचार से पूरी तरह नदारद रहीं. इसके अलावा राजेंद्र राठौड़ और सतीश पूनिया जैसे दिग्गज नेता भी प्रचार मैदान से दूर रहे. इससे पार्टी को नुकसान भी हुआ है. लोकसभा चुनाव में पार्टी 25 से घटकर 14 सीटों पर आ गई. सीपी जोशी प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए वरिष्ठ और कम अनुभवी नेताओं को साथ नहीं ले सके. जो उनके कुर्सी छोड़ने का एक बड़ा कारण है.
4. विधानसभा चुनाव में बागियों पर नहीं लगा पाए काबू
लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव में भी सीपी जोशी पार्टी में चल रही अंदरूनी कलह को नहीं रोक पाए. बागियों ने बाड़मेर, शिव, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, धौलपुर, भरतपुर जैसे जिलों की कई विधानसभा सीटों पर बीजेपी को नुकसान पहुंचाया है. नतीजा ये हुआ कि 130 से ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी चुनाव के बाद 115 सीटों पर सिमट गई.