राज्य में नाबालिगों के लापता होने के अलग-अलग मामलों में आज डीजीपी उमेश मिश्रा के साथ 5 जिलों के एसपी हाई कोर्ट में पेश हुए. जस्टिस पंकज भंडारी की बेंच में सभी अधिकारियों को बुलाया गया. कई मामलों में एक साल बाद भी नाबालिगों की बरामदगी नहीं होने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई.
कोर्ट ने डीजीपी से पूछा कि लापता बच्चों की बरामदगी को लेकर आपके पास कौन सा मॉनिटरिंग और ट्रैकिंग सिस्टम है. इस पर कोर्ट अधिकारियों द्वारा बताई गई व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हुई। कोर्ट ने पुलिस को लापता नाबालिग बच्चों की बरामदगी के संबंध में पड़ोसी राज्यों की पुलिस और प्रशासन के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया।
इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार से लापता नाबालिगों के आधार कार्ड का डेटा भी उपलब्ध कराने को कहा है. ताकि इन नाबालिगों का पता लगाया जा सके कि उनके लापता होने की अवधि के दौरान कहीं आधार का इस्तेमाल किया गया था या नहीं।
पुलिस ने कहा कि हमारा रिकॉर्ड 99 फीसदी है
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि राजस्थान पुलिस का गुमशुदा मामलों में 99 फीसदी रिकवरी रिकॉर्ड है. जो अन्य राज्यों से अधिक है. उस पर कोर्ट ने कहा कि इस साल छह महीने में वसूली का रिकॉर्ड सिर्फ 78 फीसदी है. पुलिस को इसे भी बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए.
कोर्ट ने पुलिस को होटल में ठहरने का रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था करने का मौखिक आदेश भी दिया है. इसी तरह, एनजीओ द्वारा संचालित छात्रावासों और आश्रयों में जाने वाले नाबालिगों का भी रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए।
ये अधिकारी उपस्थित हुए
अलग-अलग बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आज डीजीपी उमेश मिश्रा, अजमेर के एसपी चूनाराम जाट, अलवर के एसपी आनंद शर्मा, दौसा की एसपी वंदिता राणा, धौलपुर के एसपी मनोज कुमार और भिवाड़ी के एसपी विकास शर्मा कोर्ट में पेश हुए.