आप सभी को पता होगा कि हर माह मे दो चतुर्थी आती हैं एक तो पूर्णिमा के बाद और एक अमावस्या के बाद । मगर आप इस बात को नहीं जानते होंगे कि दोनों चतुर्थी को अलग—अलग नामों से जाना जाता हैं । आज हम आपको बता दें कि, पूर्णिमा के बाद यानी कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है, जबकि अमावस्या के बाद यानी शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से पुकारा जाता हैं ।
अब आपको बता दें कि, धर्मशास्त्रों में इस बात को बताया गया है कि, पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी का खास महत्व होता है और मई के महिने में ये चतुर्थी 19 मई यानी गुरुवार को आ रही हैं । इस दिन समस्त दुखों का निवारण करने वाले संकटमोचन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की खास पूजा-अर्चना की जाती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस चतुर्थी को लेकर ऐसी मान्यता है कि यदि इस दिन कोई व्यक्ति भगवान श्रीगणेश की पूजा- अर्चना करता हैं तो भगवान उसके सारे कष्ट हर लेते हैं ।
जानिए, संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व —
इस चतुर्थी के बारे में ऐसी मान्यता हैं कि, संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं । जिन लोगों के घर में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं या जिनकी संतान का विवाह नहीं हो पा रहा है ऐसे लोगों को तो विशेष तौर पर इस चतुर्थी का व्रत करना चाहिए । वैसे तो इस बात को हर कोई जानता हैं कि, भगवान गणेश को शुभता का कारक माना जाता है और इसलिए उनका व्रत करने से घर-परिवार में शुभता का वास होता है । अब आपको बता दें कि, इस दिन आपको भगवान गणेश जी को चार बेसन के लडडुओं का भोग लगाना चाहिए ।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
इस दिन आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ कपड़े पहनने चाहिए, उसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करें, उसके बाद पूजा घर को साफ करें और गंगाजल छिड़कें जिसके बाद चौकी पर पीले रंग का साफ कपड़ा बिछा दें और इस पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें उसके बाद पूजा में धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं, जिसके बाद भगवान को जल और फूल अर्पित करें और रोली, अक्षत यानी चावल और चांदी की वर्क लगाएं , इसके बाद लाल रंग के फूल, जनेऊ, दूब, पान में सुपारी, लौंग और इलायची भी भगवान गणेश जी को अर्पित करें, उसके बाद भगवान को नारियल और मोदक का भोग लगाएं और सबसे आखिरी में भगवान गणेश जी की आरती करें । इसके आगे आपको बता दें कि, शाम को सूबह की भांति भगवान का पूजन करके प्रसाद को बांटें और चांद को देखकर अपना व्रत खोल लें ।
संकष्टी चतुर्थी पर इन मंत्रों का जाप करें —
1- गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
2- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
3- ॐ श्री गं गणपतये नम: का जाप करें।
श्री गणेश जी का गायत्री मंत्र
- ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।
धन-संपत्ति प्राप्ति के लिए मंत्र
ऊँ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।
र्विघ्न हरण का मंत्र
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:। निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥
बाधांए दूर करने का मंत्र
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।