शास्त्रों के अनुसार, जब किसी भी माह की सप्तमी तिथि रविवार के दिन आती हैं तो उसे भानु सप्तमी कहा जाता हैं यानी के भगवान सूर्य का दिन । ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 22 मई यानी रविवार का दिन हैं और दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाएगी और कई लोग इस दिन व्रत रखकर भगवान सूर्य को प्रसन्न करेंगे ताकि उनके धन और वैभव प्राप्त हो सके । वैसे भी ज्येष्ठ माह में सूर्य देव की उपासना और रविवार व्रत रखने का महत्व है । पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने इस माह बारे में जानकारी देते हुए कहा है कि, भानु सप्तमी का व्रत रखने और सूर्य देव की पूजा करने से दुख, रोग, पाप आदि नष्ट हो जाते हैं । आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस दिन सबसे पहले सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए, जिससे बुद्धि विवेक बढ़ता है, दान करने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है । आपको बता दें कि, जिस व्यक्ति का उसके पिता के साथ रिश्ता खराब हैं उस व्यक्ति को भानु सप्तमी के का व्रत करना चाहिए जिसके पुण्य प्रभाव से उसके पिता के साथ उसका रिश्ता मजबूत होगा ।

भानु सप्तमी 2022 तिथि:—
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारंभ 21 मई दिन शनिवार को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन 22 मई रविवार को दोपहर 12 बजकर 59 मिनट पर हो रहा हैं । तो आपको भानु सप्तमी व्रत 22 मई को ही रखना होगा ।

भानु सप्तमी 2022 पूजा मुहूर्त:—
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, भानु सप्तमी व्रत के दिन इंद्र योग सुबह से लेकर अगले दिन प्रात: 03:00 बजे तक रहेगा और धनिष्ठा नक्षत्र रात 10:47 बजे तक रहेगा । द्विपुष्कर योग प्रात: 05:27 बजे से लेकर दोपहर 12:59 बजे तक रहेगा । इंद्र योग, द्विपुष्कर योग और धनिष्ठा नक्षत्र शुभ एवं मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम माने गए हैं । इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस दिन राहुकाल शाम 05:26 बजे से शाम 07:09 बजे तक है । ऐसे में आप 22 मई को प्रात: स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और सूर्य देव के भानु स्वरूप की पूजा करें और इस दिन व्रत भी रखें ।

जानें, भानु सप्तमी व्रत एवं पूजा विधि
आपको बता दें कि, यदि आपको 22 मई को भानु सप्तमी का व्रत रखना है तो उस दिन आप नमक का सेवन नहीं कर सकते हैं । इस दिन प्रात: स्नान के बाद तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें लाल चंदन या रोली, अक्षत् यानी चावल, लाल पुष्प और शक्कर डालें और उसके बाद भगवान सूर्य को अर्पित करें । जिसके बाद एक लाल आसन पर बैठकर सूर्य मंत्र का जाप करें या फिर सूर्य चालीसा, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ अवश्य करें । जिसके बाद आपको घी के दीपक या कपूर से सूर्य देव की आरती करनी होगी और उसके बाद किसी ब्राह्मण को जल कलश, पंखा, गेहूं, गुड़, घी, तांबे के बर्तन, लाल वस्त्र, मसूर की दाल आदि का दान भी करना होगा । पूजा के बाद दिनभर ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा । इसके बाद शाम को फलाहार करें, लेकिन नमक न खाएं । रात्रि में फिर मीठा भोजन करके व्रत खोल लें ।