जयपुर न्यूज डेस्क: दुनिया भर में बच्चों में बढ़ता मोटापा अब सिर्फ स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक चेतावनी बन चुका है। UNICEF की चाइल्ड न्यूट्रिशन ग्लोबल रिपोर्ट में पहली बार यह साफ बताया गया है कि अब कम वजन वाले बच्चों से ज्यादा बच्चे मोटापे की गिरफ्त में हैं। पिछले 20 सालों में 5 से 19 साल तक के बच्चों में ओबेसिटी के मामले कई गुना बढ़ चुके हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। शहर हो या गांव—हर जगह बच्चे तेजी से वजन बढ़ने की समस्या से जूझ रहे हैं।
जयपुर में यह खतरा साफ दिखने लगा है। JK लोन अस्पताल के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियांशु माथुर बताते हैं कि छोटे बच्चों में मोटापा अब पहले से कहीं ज्यादा पाया जा रहा है। वजह साफ है—जीवनशैली में बदलाव और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बढ़ती आदत। पैकेज्ड स्नैक्स, मीठे ड्रिंक्स, इंस्टेंट नूडल्स और तली चीजें बच्चों की रोजमर्रा की डाइट का हिस्सा बन चुकी हैं। इसके कारण डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल और दूसरी मेटाबोलिक बीमारियां कम उम्र में ही पकड़ बनाने लगी हैं। डॉक्टरों का कहना है कि मोटापा बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है।
इसके साथ ही स्क्रीन टाइम ने स्थिति और खराब कर दी है। मोबाइल, टीवी और ऑनलाइन गेम्स की वजह से बच्चे बाहर खेलने से दूर हो रहे हैं। शारीरिक गतिविधि कम हो गई है, और घंटों बैठकर स्क्रीन देखने से वजन तेजी से बढ़ रहा है। डॉ. माथुर के मुताबिक, बच्चों के आहार में फल-सब्ज़ियां, घर का बना खाना और पौष्टिक चीजें शामिल करना बेहद जरूरी हो गया है। स्कूलों में जंक फूड की उपलब्धता पर रोक और बच्चों को खेल-कूद के लिए प्रेरित करना समय की जरूरत है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर अभी से इस खतरे को गंभीरता से नहीं लिया गया तो आने वाले समय में बच्चों में बढ़ता मोटापा भारत के लिए एक बड़े पब्लिक हेल्थ क्राइसिस का रूप ले सकता है। परिवारों, स्कूलों और समाज को मिलकर बच्चों की लाइफस्टाइल सुधारने, स्वस्थ खान-पान को बढ़ावा देने और स्क्रीन टाइम कम करने पर एक साथ काम करना होगा। तभी आने वाली पीढ़ी को इस बढ़ते खतरे से बचाया जा सकेगा।