जयपुर न्यूज डेस्क: बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने दरभंगा में आयोजित चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव में एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने कहा कि देश में कुछ साहित्यिक आयोजन ऐसे होते हैं जो देश विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देते हैं और देश हितों के खिलाफ होते हैं। उन्होंने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को भी ऐसे आयोजनों में से एक बताया।
बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने दरभंगा में चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव के दूसरे संस्करण का उद्घाटन करते हुए देश के कुछ प्रमुख साहित्य उत्सवों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इन आयोजनों में राष्ट्रविरोधी विचारधारा का प्रचार-प्रसार होता है, जिसमें जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल भी शामिल है। उन्होंने चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव की सराहना करते हुए कहा कि यह समाज में सकारात्मक सोच और राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ावा देता है।
राज्यपाल आर्लेकर ने जयपुर साहित्य महोत्सव सहित कुछ साहित्यिक आयोजनों पर सवाल उठाए हैं, जिनमें भारत विरोधी भावनाएं फैलाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन सिर्फ जयपुर में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी होते हैं, जैसे कि हिमाचल प्रदेश के सोलन में। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि ये आयोजन राष्ट्रीय हितों के विपरीत विचारधारा को बढ़ावा देते हैं और भारतीय संस्कृति को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह बयान साहित्यिक आयोजनों में राष्ट्रीय एकता और संस्कृति के महत्व पर जोर देता है।
राज्यपाल ने साहित्यिक आयोजनों में भारत विरोधी विचारों के प्रसार पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमें अपने कार्यक्रमों का उद्देश्य निर्धारित करना चाहिए ताकि हमारी सोच और चर्चा राष्ट्र हित में हो। उन्होंने साहित्य के गठन पर व्यापक चर्चा का आह्वान किया और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को पहचानने के महत्व पर जोर दिया। साथ ही, उन्होंने सामाजिक मूल्यों को आकार देने में साहित्य की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
राज्यपाल ने साहित्य की परिभाषा पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया, पूछते हुए कि क्या साहित्य में केवल उपन्यास, कविताएं, निबंध और कहानियां ही शामिल होनी चाहिए। क्या अच्छी फिल्मों की स्क्रिप्ट, थिएटर या नाटक जो इतिहास और संस्कृति की समझ को आकार देते हैं, उन्हें साहित्य का हिस्सा नहीं माना जाना चाहिए? उन्होंने यह भी कहा कि साहित्य महोत्सवों को सिर्फ हिंदी भाषा तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं और संस्कृतियों को भी इसमें शामिल करना आवश्यक है।
उनका मानना है कि इससे यह महोत्सव सभी भाषाओं के साहित्यकारों और विचारकों के लिए एक मंच बन सकेगा। इससे पहले, स्वागत समिति के अध्यक्ष और दरभंगा राज के वंशज कुमार कपिलेश्वर सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम के संयोजक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कार्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डाला।
साहित्य की व्यापक परिभाषा में शामिल हो सकते हैं:
- अच्छी फिल्मों की स्क्रिप्ट
- थिएटर या नाटक
- इतिहास और संस्कृति से जुड़े लेखन
- विभिन्न भारतीय भाषाओं में लिखे गए साहित्यिक कार्य
इस प्रकार, राज्यपाल का उद्देश्य साहित्य की परिभाषा को व्यापक बनाना और इसके दायरे को बढ़ाना है, ताकि यह विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को प्रतिबिंबित कर सके।