जयपुर न्यूज डेस्क: फ्लाइट रद्द होने की समस्या यात्रियों के लिए आम हो गई है। खासकर तब, जब एयरलाइंस को बुकिंग कम मिलती है तो वे फ्लाइट्स को अचानक रद्द कर देती हैं। आमतौर पर यात्रियों को इसके बारे में रात के समय मैसेज भेजा जाता है कि फ्लाइट संचालन कारणों से रद्द कर दी गई है। लेकिन यह संचालन कारण क्या होते हैं, इस बारे में यात्रियों को कभी स्पष्ट जानकारी नहीं दी जाती। एयरलाइंस ने इसे एक बहाने के तौर पर अपना लिया है, जिससे कम बुकिंग, तकनीकी दिक्कत या अन्य वजहों से फ्लाइट्स को आसानी से रद्द किया जा सके। जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट से रोजाना करीब 72 फ्लाइट्स का संचालन होता है। एयरपोर्ट सूत्रों के मुताबिक, अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 के बीच 160 से अधिक फ्लाइट्स रद्द हो चुकी हैं, जिनमें सर्दियों के दौरान कोहरा और फ्लाइट डायवर्जन की घटनाएं प्रमुख कारण रही हैं।
एयरलाइंस की मनमानी का असर यात्रियों पर साफ दिखाई देता है। उदाहरण के तौर पर, अलायंस एयर की सुबह 8:15 बजे कुल्लू जाने वाली फ्लाइट 9I-805 पिछले तीन महीनों में 20 बार संचालित हुई और 8 बार रद्द हो गई। इंडिगो की सुबह 5:05 बजे चंडीगढ़ जाने वाली फ्लाइट 6E-7742 पिछले एक महीने में तीन बार रद्द हो चुकी है। एयर इंडिया की सुबह 7:55 बजे मुंबई जाने वाली फ्लाइट AI-502 फरवरी में 21 से 24 तारीख तक लगातार चार दिन रद्द रही थी। इसके अलावा, स्पाइसजेट और इंडिगो की कई फ्लाइट्स भी कम बुकिंग के चलते अक्सर रद्द की जाती रही हैं।
होली के मौके पर भी फ्लाइट रद्द करने का सिलसिला जारी रहा। 14 मार्च को एक ही दिन में आठ फ्लाइट्स को रद्द कर दिया गया। इनमें कोलकाता, बेंगलुरु, अहमदाबाद और हैदराबाद की फ्लाइट्स शामिल थीं। एयरलाइंस ने इसका कारण संचालन से जुड़ी समस्याओं को बताया, लेकिन एयरपोर्ट सूत्रों की मानें तो असल वजह कम बुकिंग थी। जब फ्लाइट्स में 25% से भी कम बुकिंग थी, तो एयरलाइंस ने नुकसान से बचने के लिए उन्हें रद्द कर दिया।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस तरह के मामलों में डीजीसीए (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। एयरलाइंस की मनमानी के कारण यात्रियों को बार-बार परेशानी का सामना करना पड़ता है। कभी इमरजेंसी में यात्रा की जरूरत हो, तो भी यात्री असमंजस में रहते हैं कि उनकी फ्लाइट चलेगी या रद्द हो जाएगी। एयरलाइंस के इस रवैये से यात्रियों का भरोसा लगातार कम हो रहा है, लेकिन इसे रोकने के लिए नियामक संस्था की ओर से कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया गया है।