जयपुर न्यूज डेस्क: जयपुर ग्रेटर की मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर एक बार फिर विवादों में आ गई हैं। इस बार वजह बनी है उनकी ब्राजील यात्रा, जहां उन्होंने ब्रिक्स एसोसिएशन ऑफ सिटीज की जनरल असेंबली में भारत का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन इस विदेश दौरे के लिए उन्होंने राज्य सरकार से कोई अनुमति नहीं ली, जो नियमों के अनुसार अनिवार्य है। विपक्ष के नेता राजीव चौधरी ने इसे लेकर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सरकारी गाइडलाइन्स के तहत किसी भी सरकारी कर्मचारी या लोकसेवक को विदेश यात्रा से पहले राज्य सरकार से मंजूरी लेना जरूरी होता है, खासकर जब पूरा खर्च विदेशी संस्था उठा रही हो।
यह पहला मौका नहीं है जब सौम्या गुर्जर बिना अनुमति विदेश गई हैं। इससे पहले वे रूस में भी एक कार्यक्रम में हिस्सा ले चुकी हैं। 2017-18 में तत्कालीन मेयर अशोक लाहोटी को ऐसी ही यात्रा के लिए बाकायदा राज्य सरकार की अनुमति लेनी पड़ी थी। अब मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि चाहे निजी खर्च पर यात्रा हो या सरकारी खर्च पर, सभी सरकारी पदाधिकारियों और कर्मचारियों को अनुमति लेनी होती है। अगर जांच में पाया गया कि नियमों का उल्लंघन हुआ है तो मेयर से जवाब तलब किया जाएगा।
कानूनी विशेषज्ञों की मानें तो मेयर को अनुमति लेनी ही चाहिए थी। पूर्व विधि निदेशक अशोक सिंह के मुताबिक, राजस्थान नगरपालिका अधिनियम की धारा 66 के तहत मेयर को लोकसेवक माना जाता है, और इस नाते उन्हें विदेश यात्रा से पहले राज्य सरकार को सूचना देना और अनुमति लेना जरूरी है। अगर यात्रा का खर्च विदेशी संस्था उठा रही है, तो यह मामला FCRA कानून के दायरे में आता है, जिसकी पूर्व स्वीकृति अनिवार्य मानी जाती है। एक महीने से कम की छुट्टी के लिए भी यह नियम लागू होता है।
विवाद के बीच मेयर ने सोशल मीडिया पर अपनी ब्राजील यात्रा की जानकारी साझा की। उन्होंने इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने को गौरवपूर्ण बताया और कहा कि उन्होंने आतंकी घटनाओं का मुद्दा उठाकर भारत की शांति नीति और आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति को दोहराया। सूत्रों के मुताबिक, उन्हें इस कार्यक्रम का निमंत्रण 1 मई को मिला था और उन्होंने 6 मई को अपनी सहमति दी। आयोजन से जुड़ा सारा खर्च आयोजकों ने वहन किया, लेकिन राज्य सरकार को इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई, जिससे अब यह मुद्दा कानूनी और राजनीतिक विवाद बन गया है।