आज मोहिनी एकादशी पर करें इस स्तोत्र का पाठ, दुखों से मिलेगा छुटकारा

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Posted On:Thursday, May 12, 2022

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी का व्रत किया जाता है इस बार यह एकादशी तिथि गुरुवार को पड़ी है इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है क्योंकि एकादशी के साथ साथ गुरुवार का दिन भी जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा को समर्पित होता है मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का अवतार रखा था इस दिन व्रत करे के साथ विधि पूर्वक श्री हरि की पूजा करने से सभी तरह के दुखों से छुटकारा मिल जाता है इस दिन कथा सुनने या पढ़ने मात्र से एक हजार गायों को दान करने जितना पुण्य फल प्राप्त होता है वही आज मोहिनी एकादशी के दिन विष्णु पञ्जर स्तोत्र का पाठ करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु का स्मरण मात्र से ही इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है यह विष्णु पञ्जर स्तोत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है माना जाता है कि इसके प्रभाव से भक्तों के जीवन में सुख शांति और समृद्धि आती है, तो आज हम आपके लिए लेकर आए है विष्णु पञ्जर स्तोत्र का संपूर्ण पाठ।
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विष्णु पञ्जर स्तोत्र—

॥ हरिरुवाच ॥
प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम् ।
नमोनमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम् ॥ १॥

प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः ।
गदां कौमोदकीं गृह्ण पद्मनाभ नमोऽस्त ते ॥ २॥

याम्यां रक्षस्व मां विष्णो ! त्वामहं शरणं गतः ।
हलमादाय सौनन्दे नमस्ते पुरुषोत्तम ॥ ३॥

प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो ! त्वामह शरणं गतः ।
मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम् ॥ ४॥

उत्तरस्यां जगन्नाथ ! भवन्तं शरणं गतः ।
खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे ! ॥ ५॥
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नमस्ते रक्ष रक्षोघ्न ! ऐशान्यां शरणं गतः ।
पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम् ॥ ६॥

प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्न्येय्यां रक्ष सूकर ।
चन्द्रसूर्यं समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा ॥ ७॥

नैरृत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन् ।
वैजयन्तीं सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम् ॥ ८॥

वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोऽस्तु ते ।
वैनतेयं समारुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन ! ॥ ९॥

मां रक्षस्वाजित सदा नमस्तेऽस्त्वपराजित ।
विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां त्वं रसातले ॥ १०॥

अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोऽस्तु ते ।
करशीर्षाद्यङ्गुलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम् ॥ ११॥
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कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम ।
एतदुक्तं शङ्कराय वैष्णवं पञ्जरं महत् ॥ १२॥

पुरा रक्षार्थमीशान्याः कात्यायन्या वृषध्वज ।
नाशायामास सा येन चामरान्महिषासुरम् ॥ १३॥

दानवं रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान् ।
एतज्जपन्नरो भक्त्या शत्रून्विजयते सदा ॥ १४॥

इति श्रीगारुडे पूर्वखण्डे प्रथमांशाख्ये आचारकाण्डे
विष्णुपञ्जरस्तोत्रं नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥


 


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