जैसा कि आपको बता दें कि आज अपरा एकादशी हैं मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं । शास्त्रों के अनुसार, महाभारत, नारद और भविष्यपुराण में भी इस व्रत का वर्णन किया गया हैं । इस व्रत को लेकर मान्यता हैं कि, इस दिन व्रत और विधि-विधान से पूजा अर्चना करने पर आप जाने—अजाने हुए पापों से मुक्त हो जाते हैं और साथ ही आपकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं ।
जानिए, अचला एकादशी पर बने रहे हैं ये महासंयोग—
आपकी जानकारी के अनुसार बता दें कि, हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार अचला एकादशी पर एक साथ दो-दो शुभ संयोग बने हैं । आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस बार अचला एकादशी पर आयुष्मान के साथ-साथ गजकेसरी नाम के दो शुभ योग भी बने हैं जिसके कारण इस व्रत को और भी महत्व बढ़ गया हैं ।
जानिए, अपरा एकादशी शुभ मुहूर्त —
ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी तिथि मई 25, बुधवार की सुबह 10:32 से शुरू होगी जो अगले 26 मई, गुरुवार की सुबह लगभग 10:54 तक रहेगी।
जानिए, अचला एकादसी पूजा विधि :—
आपको बता दें कि, इस दिन आपको प्रात: काल में पवित्र जल में स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए और अपनी इच्छा अनुसार व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। उसके बाद भगवान को रक्षा सूत्र बांधे और शुद्ध घी का दीपक जलाएं जिसे बाद भगवान की कुंकुम, चावल, रोली, अबीर, गुलाल आदि से पूजा करें। इसके बाद शंख और घंटी की पूजा भी जरूर करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है । उसके बाद भगवान विष्णु को शुद्धतापूर्वक बनाई हुई चीजों का भोग लगाएं । इसके बाद विधिपूर्वक पूर्वक दिन भर उपवास करें और शाम को सुबह की भांति पूजा करके अपना व्रत खोल लें ।
जानिए, अचला एकादशी व्रत कथा :—
किसी समय एक देश में महिध्वज नामक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ा ही अन्यायी और क्रूर था। वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था। एक दिन ब्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी व उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे दबा दिया। इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में वास करने लगी। एक दिन धौम्य ऋषि उस पेड़ के नीचे से निकले। उन्होंने अपेन तपोबल से जान लिया कि इस पेड़ पर राजा महिध्वज की आत्मा का निवास है। ऋषि ने राजा के प्रेत को पीपल से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया। साथ ही प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत रखने से राजा का प्रेत दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।