7 अक्टूबर 2023 को जब हमास ने इजरायल पर भीषण हमला किया, तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई। इस हमले में 1200 से ज्यादा इजरायली नागरिकों की मौत हो गई थी और लगभग 250 लोगों को बंधक बना लिया गया। उस समय इसे केवल एक आतंकी हमला माना गया था, लेकिन अब करीब दो साल बाद एक रिपोर्ट ने इस घटना के पीछे के गहरे राजनीतिक मकसदों को उजागर किया है। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में इस हमले के पीछे का मास्टरमाइंड और उद्देश्य सामने आया है, जो वैश्विक राजनीति और मध्य पूर्व की स्थिरता को लेकर गंभीर संकेत देता है।
हमले का मास्टरमाइंड: याह्या सिनवार
रिपोर्ट के अनुसार, हमले की योजना हमास के नेता याह्या सिनवार ने तैयार की थी। सिनवार ने अपने सहयोगियों से कहा था कि यह हमला इजरायल और सऊदी अरब के बीच चल रही सामान्यीकरण वार्ता को विफल करने के लिए जरूरी है। उन्हें डर था कि यदि ये दोनों देश संबंध सामान्य कर लेते हैं, तो यह फिलिस्तीन की स्वतंत्रता और हमास के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है।
सिनवार के इस बयान ने स्पष्ट कर दिया कि यह हमला केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि राजनीतिक कूटनीति के खिलाफ हिंसक प्रतिरोध था। उल्लेखनीय है कि इजरायली सेना ने बीते वर्ष सिनवार को एक सैन्य अभियान में मार गिराया था, लेकिन उनका बनाया हुआ यह प्लान अब जाकर पूरी दुनिया के सामने आया है।
ईरान के साथ मिलीभगत
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि हमास ने यह हमला ईरान के सहयोग से किया था। इजरायली सेना द्वारा गाजा में चलाए गए सैन्य ऑपरेशन के दौरान एक सुरंग से मिले दस्तावेजों में यह बात सामने आई कि यह हमला पहले से ही दो वर्षों से तैयार किया जा रहा था। दस्तावेजों के अनुसार, याह्या सिनवार ने अपने आदमियों को आदेश दिया था कि जैसे ही समय उचित हो, वे उस हमले को अंजाम दें जिसका वे लंबे समय से इंतजार कर रहे थे।
गाजा की सुरंगों से मिले प्रमाण
इजरायली सेना को गाजा के नीचे बनी सुरंगों में हमास के ठिकानों से ऐसे दस्तावेज मिले हैं जो इस पूरे साजिश की पुष्टि करते हैं। इन दस्तावेजों से यह भी पता चला कि हमले से मात्र 5 दिन पहले हमास के शीर्ष नेताओं की एक बैठक हुई थी, जिसमें रणनीति को अंतिम रूप दिया गया। बैठक में यह सहमति बनी कि अगर इजरायल और सऊदी अरब के रिश्ते सामान्य हो जाते हैं, तो यह हमास की विचारधारा और फिलिस्तीन की आजादी के लिए खतरा बन जाएगा। इसलिए इसे हर कीमत पर रोका जाना चाहिए।
सऊदी-इजरायल समझौते पर पड़ा असर
इस हमले का एक और बड़ा असर यह हुआ कि इजरायल और सऊदी अरब के बीच सामान्य संबंध स्थापित करने की वार्ता अचानक रुक गई। सऊदी अरब शुरुआत में इजरायल को सहयोगी राष्ट्र के रूप में मान्यता देने को तैयार था, लेकिन उसने शर्त रखी थी कि फिलिस्तीनी क्षेत्र को स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी जाए। हमास को यह स्वीकार नहीं था, क्योंकि उनका उद्देश्य है पूरे इजरायल को खत्म करके एक इस्लामिक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना करना।
हमास इस वार्ता को फिलिस्तीनियों के लिए "धोखा" मान रहा था और इसी भावना ने इस भीषण हमले की नींव रखी।
इजरायल की जवाबी कार्रवाई: गाजा में तबाही
हमले के जवाब में इजरायली सेना ने गाजा पर व्यापक सैन्य अभियान शुरू किया। गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस ऑपरेशन में अब तक 42,000 से ज्यादा फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। इस आंकड़े में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस अभियान को लेकर मानवाधिकार संगठनों और संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है, लेकिन इजरायल का कहना है कि यह कार्रवाई अपने नागरिकों की रक्षा के लिए जरूरी थी।
क्या था हमले का असली उद्देश्य?
इस पूरी घटना से यह स्पष्ट होता है कि हमास का मुख्य उद्देश्य केवल हिंसा नहीं, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करना था। वे इजरायल और अरब देशों के बीच बन रहे नए समीकरणों से घबराए हुए थे। याह्या सिनवार जैसे नेता मानते थे कि अगर इजरायल अरब देशों के साथ मिलकर एक नया सामरिक समीकरण बना लेता है, तो इससे फिलिस्तीनी संघर्ष कमजोर हो जाएगा।
हमले का एक उद्देश्य यह भी था कि मध्य पूर्व में अमेरिका की भूमिका को भी चुनौती दी जाए, क्योंकि अमेरिका इन संबंधों को मजबूत करने की दिशा में सक्रिय था।
निष्कर्ष: हमला या कूटनीतिक प्रतिरोध?
7 अक्टूबर 2023 का हमला सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था। यह मध्य पूर्व की कूटनीतिक धारा को मोड़ने की कोशिश थी, जिसमें हजारों जानें गईं और लाखों लोग प्रभावित हुए। इसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या वैश्विक राजनीति में आतंकवादी संगठन अपनी विचारधाराओं को लागू करने के लिए आम नागरिकों को बलि का बकरा बनाते रहेंगे?
हमास के इस हमले ने यह साबित कर दिया कि जब राजनीतिक वार्ताएं उनके एजेंडे के खिलाफ होती हैं, तो वे उसे बाधित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अब देखना यह है कि इजरायल, सऊदी अरब और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस नई सच्चाई से कैसे निपटते हैं और क्या शांति की संभावनाएं अब भी बाकी हैं?