जयपुर न्यूज डेस्क: जयपुर समेत राजस्थान के बड़े शहरों में आज गिग वर्कर्स शहरी अर्थव्यवस्था की अहम कड़ी बन चुके हैं। हर दिन हजारों फूड डिलीवरी एजेंट्स, कैब ड्राइवर, घरेलू सेवा प्रदाता और ई-कॉमर्स वर्कर सड़कों पर मेहनत करते हैं। लेकिन अफसोस की बात ये है कि उनके पास न तो स्थायी नौकरी की गारंटी है और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा। एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ जयपुर में ही ये वर्कर्स हर महीने करीब 800 करोड़ रुपए की आर्थिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, फिर भी इनके हक अधूरे हैं।
घोषणाओं के बावजूद ज़मीनी स्तर पर नज़र नहीं आता असर
राजस्थान सरकार ने 2023 में गिग वर्कर्स की बेहतरी के लिए देश का पहला वेलफेयर बिल पास किया था। इसमें 200 करोड़ के फंड, वेलफेयर बोर्ड और यूनिक आईडी जैसी बातें शामिल थीं। वहीं केंद्र सरकार ने भी इस साल के बजट में गिग वर्कर्स के लिए ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत बीमा जैसी योजनाओं की घोषणा की थी। लेकिन आज की स्थिति यह है कि न तो पंजीकरण की रफ्तार बढ़ी है और न ही बीमा कार्ड ज़मीनी स्तर तक पहुंचे हैं।
क्यों अटकी हैं योजनाएं?
इन योजनाओं के क्रियान्वयन में सबसे बड़ी बाधा है—जटिल प्रक्रिया और जागरूकता की कमी। ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी कागज़ात कई वर्कर्स के पास नहीं होते। ऊपर से जिन एग्रीगेटर कंपनियों के ज़रिए ये लोग काम करते हैं, वो भी सहयोग नहीं कर रही हैं। कंपनियां न तो वेलफेयर फीस कटौती में मदद कर रही हैं और न ही अपने वर्कर्स का पंजीकरण करवा रही हैं। जयपुर जैसे बड़े शहर में अधिकांश गिग वर्कर्स को यह तक नहीं पता कि उनके लिए कोई योजना चल रही है।
बजट के बावजूद हालात जैसे थे वैसे ही हैं
राज्य सरकार ने गिग वर्कर्स के लिए 200 और फिर 250 करोड़ रुपये की घोषणा जरूर की थी, लेकिन स्पष्ट नियम-कायदे न होने के कारण इस राशि का कोई असर अब तक नज़र नहीं आया। कंपनियों पर सरकार की पकड़ कमजोर है, और वर्कर्स को कम पैसों में ज़्यादा काम करना पड़ता है। उनके पास न स्वास्थ्य बीमा है, न भविष्य की पेंशन, और न ही काम के दौरान कोई मदद। ऐसे में ये लोग सिर्फ अपने दम पर सड़कों पर उतरते हैं—बिना किसी सुरक्षा और भरोसे के।