मुंबई, 1 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन) कभी धूम्रपान करने वालों की बीमारी मानी जाने वाली फेफड़ों के कैंसर की पहचान अब भारत में धूम्रपान न करने वालों, खासकर शहरी निवासियों और महिलाओं में तेज़ी से हो रही है। पिछले एक दशक में, देश भर के कैंसर विशेषज्ञों ने एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखी है: फेफड़ों के कैंसर के ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है जिनकी वजह सिर्फ़ तंबाकू का सेवन नहीं है।
बेंगलुरु के एस्टर व्हाइटफ़ील्ड अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी और हेमेटो-ऑन्कोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. साई विवेक वी. कहते हैं, "धूम्रपान अभी भी सबसे बड़ा जोखिम कारक हो सकता है, लेकिन हमारे क्लीनिकों में, हम धूम्रपान न करने वालों, खासकर शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में रहने वाली महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में चिंताजनक वृद्धि देख रहे हैं।"
तो इस उछाल के पीछे क्या है? इस मूक लेकिन गंभीर स्वास्थ्य चिंता के छह प्रमुख कारण इस प्रकार हैं।
1. विषाक्त बाहरी हवा
भारत वायु गुणवत्ता के मामले में दुनिया के सबसे खराब देशों में से एक है। दिल्ली, कोलकाता और लखनऊ जैसे शहरों में, PM2.5 कणों, वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन और औद्योगिक प्रदूषकों का खतरनाक रूप से उच्च स्तर फेफड़ों को नुकसान पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभाता है। डॉ. विवेक बताते हैं, "सूक्ष्म कणों और हाइड्रोकार्बन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से समय के साथ कोशिकीय उत्परिवर्तन हो सकते हैं, यहाँ तक कि उन लोगों में भी जिन्होंने कभी सिगरेट नहीं पी है।"
2. खाना पकाने से होने वाला घर के अंदर का वायु प्रदूषण
ग्रामीण और अर्ध-शहरी घरों में, खाना पकाने का काम अक्सर बिना उचित वेंटिलेशन के बायोमास ईंधन या उच्च तापमान वाले तेलों का उपयोग करके किया जाता है। इससे घर के अंदर के वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहना, खासकर महिलाओं के लिए, एक बड़ा जोखिम कारक बन जाता है। डॉ. विवेक कहते हैं, "रसोई में चिमनी या एग्जॉस्ट सिस्टम की कमी से ज़हरीले धुएं का सीधा साँस लेना होता है। लंबे समय तक संपर्क में रहने से उत्परिवर्तन होते हैं जो अंततः कैंसर का कारण बन सकते हैं।"
3. अप्रत्यक्ष धुएँ का संपर्क
डॉ. विवेक चेतावनी देते हैं, "धूम्रपान करने वालों के परिवार के सदस्य, खासकर महिलाएँ और बच्चे, अनजाने में रोज़ाना कैंसरकारी तत्वों को साँस के ज़रिए अंदर लेते हैं। इसका संचयी प्रभाव खतरनाक होता है।" धूम्रपान करने वालों के साथ रहना या काम करना भी समय के साथ उतना ही हानिकारक हो सकता है। निष्क्रिय धूम्रपान को बार-बार फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया है।
4. आनुवंशिक कारक
युवा, धूम्रपान न करने वाले फेफड़ों के कैंसर के रोगियों, खासकर महिलाओं में, आनुवंशिक उत्परिवर्तन तेज़ी से पाए जा रहे हैं। ये उत्परिवर्तन बिना किसी ज्ञात पर्यावरणीय या जीवनशैली संबंधी जोखिम के अनियंत्रित कोशिका वृद्धि को गति प्रदान कर सकते हैं।
5. व्यावसायिक खतरे
खराब वेंटिलेशन वाले या एस्बेस्टस, रेडॉन या डीजल जैसे रसायनों के संपर्क में आने वाले उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों को भी उच्च जोखिम होता है। डॉ. विवेक कहते हैं, "बिना सुरक्षा के लंबे समय तक कैंसरकारी पदार्थों के संपर्क में रहना फेफड़ों के कैंसर का एक ज्ञात कारण है।"
6. देरी से निदान
धूम्रपान न करने वालों में, पुरानी खांसी या सांस फूलने जैसे लक्षणों को अक्सर अस्थमा, टीबी या एलर्जी समझ लिया जाता है। इससे इलाज में देरी होती है और नतीजे खराब होते हैं। डॉ. विवेक कहते हैं, "जब तक कई धूम्रपान न करने वालों का सही निदान होता है, तब तक बीमारी अक्सर गंभीर अवस्था में पहुँच चुकी होती है।"
यह मिथक कि फेफड़ों का कैंसर केवल धूम्रपान के कारण होता है, न केवल पुराना है, बल्कि खतरनाक भी है। भारत को अधिक जागरूकता, बेहतर स्क्रीनिंग प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय व आनुवंशिक कारकों की सक्रिय जाँच की आवश्यकता है।