मुंबई, 01 अप्रैल, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी को मकान गिराने पर फटकार लगाई। कोर्ट ने अधिकारियों के बुलडोजर एक्शन को अमानवीय और अवैध बताया। साथ ही कहा- 2021 में हुई इस कार्रवाई के दौरान दूसरों की भावनाओं और अधिकारों का ख्याल नहीं रखा गया। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने कहा- देश में लोगों के रिहायशी घरों को इस तरह से नहीं गिराया जा सकता है। इसने हमारी अंतरआत्मा को झकझोर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राइट टु शेल्टर नाम की भी कोई चीज होती है। उचित प्रक्रिया नाम की भी कोई चीज होती है। इस तरह की कार्रवाई किसी भी तरह से ठीक नहीं है।
दरअसल, प्रयागराज प्रशासन ने 2021 में गैंगस्टर अतीक की प्रॉपर्टी समझकर एक वकील, प्रोफेसर और 3 अन्य के मकान गिरा दिए थे। सुप्रीम कोर्ट में वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य लोगों ने याचिका दाखिल की थी। ये वो लोग हैं, जिनके मकान तोड़े गए थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इनकी याचिकाएं ठुकरा दी थीं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी को आदेश दिया कि जिनके मकान गिराए गए हैं, उन्हें 6 हफ्तों के भीतर 10-10 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उज्जल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर में 24 मार्च की घटना का जिक्र करते हुए कहा, ''अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान एक तरफ झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था तो दूसरी तरफ एक 8 साल की बच्ची अपनी किताब लेकर भाग रही थी। इस तस्वीर ने सबको शॉक्ड कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में जब पहले इस केस की सुनवाई हुई तो पीड़ितों की तरफ से वकील अभिमन्यु भंडारी ने दलील दी। उन्होंने कहा था, अतीक अहमद नाम का एक गैंगस्टर था, जिसकी 2023 में हत्या कर दी गई थी। अफसरों ने पीड़ितों की जमीन को अतीक की जमीन समझ लिया। उन्हें (राज्य को) अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए।" इस दलील पर यूपी सरकार ने कहा था कि हमने याचिकाकर्ताओं को नोटिस का जवाब देने के लिए उचित समय दिया था। इस बहस से जस्टिस ओका सहमत नहीं हुए। उन्होंने कहा, नोटिस इस तरह क्यों चिपकाया गया? कूरियर से क्यों नहीं भेजा गया? कोई भी इस तरह नोटिस देगा और तोड़फोड़ करेगा? ये तोड़फोड़ का एक ऐसा मामला है, जिसमें अत्याचार शामिल है।