मनी लॉन्ड्रिंग केस में सुप्रीम कोर्ट की ED को कहा, क्या हम इतने कठोर कि आरोपी को मामले से जुड़े दस्तावेज न दिखाएं, जानिए पूरा मामला

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Posted On:Wednesday, September 4, 2024

मुंबई, 4 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले की जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस ए अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनवाई की। ED की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू कोर्ट में मौजूद रहे। फिलहाल बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। बेंच ने ED से पूछा, समय बदल रहा है। हम और दूसरी तरफ के वकील दोनों का उद्देश्य न्याय करना है। क्या हम इतने कठोर हो जाएंगे कि एक व्यक्ति जो केस का सामना कर रहा है, लेकिन हम जाकर कहते हैं कि दस्तावेज सुरक्षित हैं? क्या यह न्याय होगा? ऐसे बहुत ही गंभीर मामले हैं जिनमें जमानत दी जाती है, लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट के मामलों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही है। समय बदल रहा है। क्या हम इस पीठ के रूप में इतने कठोर हो सकते हैं? यदि कोई आरोपी जमानत या मामले को खारिज करने के लिए दस्तावेजों पर निर्भर करता है तो उसे दस्तावेज मांगने का अधिकार है। ऐसे बहुत ही गंभीर मामले हैं, जिनमें जमानत दी जाती है, लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट के केसों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही। 

आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को अवैध खनन मामले में हेमंत सोरेन के करीबी प्रेम प्रकाश को बेल दी थी। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत दर्ज केस में जांच एजेंसी को निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा था किसी व्यक्ति की आजादी मूल सिद्धांत है। हमने सिसोदिया केस में भी कहा था कि बेल नियम है और जेल एक अपवाद। PMLA के सेक्शन 45 में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी के बेल की 2 शर्तें दी गई है। पहला, जब ऐसा लग रहा हो कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया है। दूसरा, जमानत पर आरोपी कोई अपराध नहीं करेगा। लेकिन ये दोनों चीजें आजादी के मूल सिद्धांत को नहीं रोक सकतीं। कोर्ट ने कहा था कि इस केस में ऐसा लगता है कि आरोपी प्रेम प्रकाश को बेल मिलने के बाद भी केस पर असर नहीं पड़ेगा। इसलिए हम प्रेम प्रकाश को बेल दे रहे हैं। बेंच ने कहा- यह देखकर दुख हो रहा है, प्रॉसिक्यूशन को निष्पक्ष रहना चाहिए। जो व्यक्ति खुद को दोषी बताता है उसे गवाह बना दिया जाता है।

दरअसल, साल 2022 का सरला गुप्ता बनाम ED इस सवाल से संबंधित है कि क्या जांच एजेंसी आरोपी को उन महत्वपूर्ण दस्तावेजों से वंचित कर सकती है, जिन पर वह प्री-ट्रायल फेज में PMLA मामले में भरोसा कर रही है।


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