मुंबई, 24 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। कांग्रेस ने चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स पब्लिक करने से रोकने के नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। केंद्र सरकार ने बीते दिनों पोलिंग स्टेशन के CCTV, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स को पब्लिक करने से रोकने के लिए चुनाव नियमों में बदलाव किया था। याचिका पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, चुनाव आयोग को ऐसे महत्वपूर्ण कानून (चुनाव संचालन नियम, 1961) में एकतरफा संशोधन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। नियमों में बदलाव के बाद बीते दिन रमेश ने कहा था, चुनाव आयोग पारदर्शिता से इतना डरता क्यों है। आयोग के इस कदम को जल्द ही कानूनी चुनौती दी जाएगी। आपको बता दें, चुनाव आयोग (EC) की सिफारिश पर कानून मंत्रालय ने 20 दिसंबर को द कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल- 1961 के नियम 93(2)(A) में बदलाव किया है। नियम 93 कहता है, "चुनाव से जुड़े सभी दस्तावेज पब्लिकली उपलब्ध रहेंगे।" इसे बदलकर "चुनाव से जुड़े सभी दस्तावेज 'नियमानुसार' पब्लिकली उपलब्ध रहेंगे" कर दिया गया है।
अधिकारियों ने बताया था कि AI के इस्तेमाल से पोलिंग स्टेशन के CCTV फुटेज से छेड़छाड़ करके फेक नैरेटिव फैलाया जा सकता है। इसी कारण इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पब्लिक करने पर रोक लगाई गई है। हालांकि बदलाव के बाद भी ये रिकार्ड्स कैंडिडेट्स के लिए उपलब्ध रहेंगे। अन्य लोग इसे लेने के लिए कोर्ट जा सकते हैं। दरअसल, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक केस में हरियाणा विधानसभा चुनाव से जुड़े दस्तावेज याचिकाकर्ता से साझा करने का निर्देश दिया था। इसमें CCTV फुटेज को भी नियम 93(2) के तहत माना गया था। हालांकि चुनाव आयोग ने कहा था कि इस नियम में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड शामिल नहीं है। इस अस्पष्टता को दूर करने के लिए नियम में बदलाव किया गया है।
वहीं, EC ने बताया कि नामांकन फॉर्म, चुनाव एजेंटों की नियुक्ति, चुनाव रिजल्ट और इलेक्शन अकाउंट स्टेटमेंट जैसे दस्तावेजों का उल्लेख कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल में किया गया है। आचार संहिता के दौरान उम्मीदवारों के CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज इसके दायरे में नहीं आते हैं। EC के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि पोलिंग स्टेशन की CCTV कवरेज और वेबकास्टिंग कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल के तहत नहीं की जाती, बल्कि यह ट्रांसपेरेंसी के लिए होती है। वहीं, आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां नियमों का हवाला देकर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मांगे गए। संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि नियमों में बताए गए कागजात ही सार्वजनिक हों। अन्य दस्तावेज जिनका नियमों में जिक्र नहीं है, उसे पब्लिक करने की अनुमति न हो। इसी साल जनवरी में चंडीगढ़ मेयर चुनाव में चुनाव अधिकारी के बैलट पेपर से छेड़छाड़ का CCTV वीडियो सामने आया था। यह चुनाव AAP और कांग्रेस ने मिलकर लड़ा था। वोटिंग के बाद चुनाव अधिकारी अनिल मसीह ने रिजल्ट घोषित किया। इसमें भाजपा कैंडिडेट मनोज सोनकर को 16 वोट मिले। वहीं AAP-कांग्रेस कैंडिडेट कुलदीप टीटा को 12 वोट मिले। चुनाव अधिकारी ने गठबंधन कैंडिडेट के 8 वोट इनवैलिड बताए। इस पर AAP-कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मसीह ने बैलेट पर खुद निशान लगाकर इनवैलिड किया है। मामला सुप्रीम कोर्ट गया। 5 फरवरी को सुनवाई के दौरान तब के CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने भी वह वीडियो देखा, जिसमें चुनाव अधिकारी अनिल मसीह बैलट पेपर पर क्रॉस लगाते दिख रहे थे। चंद्रचूड़ ने इस पर कड़ी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने 8 इनवैलिड वोटों को सही माना और गठबंधन उम्मीदवार को मेयर बनाने का फैसला सुनाया।